भारत के संसद भवन का इतिहास
भारतीय संसद भवन, जिसे संसद भवन भी कहा जाता है, भारत के लोकतांत्रिक शासन का एक प्रमुख प्रतीक है। यह भारत की संसद की सीट के रूप में कार्य करता है, जहां देश के निर्वाचित प्रतिनिधि विधायी मामलों पर चर्चा और बहस करने के लिए एकत्रित होते हैं। यहां भारतीय संसद भवन का संक्षिप्त इतिहास दिया गया है: पृष्ठभूमि: भारत में एक अलग संसद भवन की मांग 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में उठी जब प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने स्व-शासन और प्रतिनिधित्व के लिए अभियान चलाया।
साइट और वास्तुकार का चयन: 1919 में, ब्रिटिश सरकार ने ब्रिटिश भारत की राजधानी को कोलकाता से दिल्ली स्थानांतरित करने का निर्णय लिया और 1927 में, नई राजधानी के लिए स्थान चुना गया। एडविन लुटियंस, एक प्रसिद्ध ब्रिटिश वास्तुकार, को संसद भवन सहित सरकारी भवनों को डिजाइन करने के लिए नियुक्त किया गया था। निर्माण: संसद भवन का निर्माण 1921 में शुरू हुआ और 1927 में पूरा हुआ। गोलाकार इमारत अशोक चक्र के आकार से प्रेरित थी, जो भारतीय संस्कृति में एक प्रमुख प्रतीक है। उद्घाटन: संसद भवन का उद्घाटन 18 जनवरी, 1927 को भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड इरविन ने किया था।
केंद्रीय विधान सभा का पहला सत्र, जो बाद में भारत की संसद बना, 20 फरवरी, 1927 को नए भवन में आयोजित किया गया था। विकास और विस्तार: इन वर्षों में, जैसे-जैसे भारत का राजनीतिक परिदृश्य विकसित हुआ, अतिरिक्त स्थान की आवश्यकता स्पष्ट होती गई। सांसदों और कर्मचारियों की बढ़ती संख्या को समायोजित करने के लिए कई विस्तार और संशोधन किए गए।
विशेष रूप से, एक नया संसद भवन एनेक्सी 1956 में कार्यालयों और समिति कक्षों के लिए अधिक स्थान प्रदान करने के लिए बनाया गया था। ऐतिहासिक महत्व: भारतीय संसद भवन देश के इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी रहा है। इसने भारत के स्वतंत्रता संग्राम, भारतीय संविधान के निर्माण और देश के शासन को आकार देने वाले बाद के कानून जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस और चर्चा के लिए एक मंच के रूप में कार्य किया। वास्तु विशेषताएं: संसद भवन में ब्रिटिश और भारतीय स्थापत्य शैली का अनूठा मिश्रण है। इसकी तांबे की छत के साथ केंद्रीय गुंबद एक प्रमुख विशेषता है। इमारत में मुगल और राजस्थानी शैलियों जैसे विभिन्न भारतीय स्थापत्य परंपराओं के तत्व भी शामिल हैं।
प्रतीकवाद और महत्व: भारतीय संसद भवन भारत में लोकतंत्र के सार का प्रतिनिधित्व करता है। यह लोकतांत्रिक मूल्यों, समावेशिता और सार्वजनिक प्रतिनिधित्व की शक्ति के प्रति देश की प्रतिबद्धता के प्रतीक के रूप में खड़ा है। यह ध्यान देने योग्य है कि जहां संसद भवन का महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और स्थापत्य महत्व है, वहीं भारतीय संसद के वास्तविक विधायी कार्य आसन्न संसद भवन एनेक्सी और संसद परिसर के भीतर अन्य भवनों में भी होते हैं।
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